शनिवार, 9 अक्तूबर 2010

Jai ho Jai ho Chacha ki phir Wapsi

जय करो जय करो चाचा जी की वापसी की आज चाचा के भतीजे के लड़के की पैदा होने पर पार्टी दी गई और जी गलती से अरे गलती से क्या बुलाया था तो गया था में भी चाचा जेसा होता जारहा हु सुधारना पड़ेगा चेलो तो जी हम सब पहुच गये आगे जा कर देखा तो चाचा जी वो ही अपने पियारे रंग में यानी यानी काले रंग में बिलकुल सही पहचाना अरे चाचा का तो है ही कला रंग और तो और पठे ने काली टी-शर्ट और कला लोवेर पहनकर रखा था और हमे हेमारी भाभी (चाचा की बीवी) से नहीं मिलवाया हम तो बोलते ही रहगए मगर मिलवाया ही नहीं और अपना दिन काला होने का इन्तजार करते रहे मेने उनके मुह से सुना की वो बोल रहे थे की यार रात कब होगी में तो कहने वाला था (कहने वाला था नहीं कह दिया था वो तो किसी ने सुना नहीं) की अँधेरे में क्या अपने ................ करोगे  चाचा केसा भी हो जब उन्होंने बात करनी आरम्भ की तो आछा लगा जय हो चाचा काले रंग वाले की
किसी ने कुछ लिखा है में आप तक पंहुचा रहा हु
एक दिन, एक पड़ोस का छोरा,


मेरे तै आके बोल्या :

"चाचा जी, अपनी इस्त्री दे दयो"



मैं चुप्प, वो फेर कहन लगाया :

"चाचा जी, अपनी इस्त्री दे दयो नै"



जब उसने यो कही दुबारा,

मन्ने अपनी बीरबानी की तरफ करा इशारा :

"ले जा भाई, यो बैठी"



छोरा कुछ शरमाया, कुछ मुस्काया,

फिर कहन लगाया :

"नहीं चाचा जी, वो कपडा आली"



मैं बोल्या, "अरे तन्ने  दिखे कोन्य

या कपडा मैं ही तो बैठी से"



वो छोरा फेर कहन लगाया :

"चाचा जी, आप तै मज़ाक करो सो

मन्ने तो वो कर्रेंट वाली चैहये"



मैं बोल्या, "अरे बावली औलाद,

तू हाथ लगाया के तो देख

या कर्रेंट भी मारे से"

राहुल टोकस

1 टिप्पणी:

अन्तर सोहिल ने कहा…

दीपक तुम्हारे पास जबरदस्त क्षमता है।
तुम निरन्तरता बनाये रखो।
तुम्हारी पोस्ट पढकर दिल गुदगुदा जाता है। बस लिखते रहो। यही दुआ है।

जै राम जी की