गुरुवार, 3 मार्च 2011

नम्सकार

आप सोच रहे होगे की मे इस साप की तरह भ्यान्क दीखता होन्गा पर एसा नहि है मे एसा दीखता नहि हुं पर कभी कभी बन जाता हुं  अपने आप को नुक्सान पहुचाने के लिये मेरा नाम नटखट हैं ये नाम तो कालपनीक है पर मै इसी नाम से लिखना पसन्द करुन्गा कियोकी ये मुझे पसन्द हैं।

मुझे बोल्ग लिखने की प्रन्ना श्री अन्तर सोहील जी ने दी है मे उनका अभारी हू की उनहोने मुझे इस कुए मे कुदने के लिये काहा मुझे अरम्भ मे तो कम मजा आया पर अब मे इसका पुर्ण आन्नद उटाने की कोशिस कर राहा हु मे अपने बरे मे लिखना पसन्द करता हु पर आज एक माहान पुरुष के बारे मे श्री अन्तर जी दरसल हम दोनो एक ही व्यवसाय के दो अलग अलग किडे है वो अलग फल खाते है मै अलग फल खाता हुं वो मेरे प्रिय मित्र तो है पर उनकी खास बात है की वो बातो बातो मे दुसरे का चीरहरण करने लगते है ये ही कला उनकी खुबी है इस के अलावा इन्मे और भी केला मोजुद है  और एक खास बात वो भी मेरि तरह चाचा के पुराने आशिक है चाचा काले रन्ग वाला बलकी ये जनाब तो और दो कदम आगे है चाचा और अन्तर जी एक दुसरे के पुराने पडोसी है मुझे तो एसा लगता है की दोनो एक दुसरे को अपने अपने केबीन की खिड्की से देख कर मुस्कराते होगे और शर्मा कर अपने अपने शर्ट मे मुहु डाल लेते होन्गे और फिर से नजरे उटा कर एक दुसरे को प्यार भरी नीगाहो से ताकते होगे । चलो दोनो जेसे है बहुत अच्छे है आखीर एक लीखने के लीये प्रेन्ना देता है तो दुसरा मेरी काहनीयो को प्रेरणा प्रदान करता है।

1 टिप्पणी:

अन्तर सोहिल ने कहा…

नमस्कार जी
मैं भी आभारी हूँ आपका कि आप लिखने लगे।
मुझे शुरु से ही आपमें लेखन की सम्भावनायें दिखती है॥
अब निरन्तरता बनाये रखना।

प्रणाम