गुरुवार, 3 मार्च 2011

मूवी २०११ नटखट छोरा


मूवी २०११ नटखट छोरा 

शुरवात बजट से

२०११ के बजट के अनुसार  आज टी.वी. खरिदो मोबाइल खरीदो कपीयुटर खरीदो सस्ते और अपनी बेटी के देहज में दो पर शादी के समय शर्त रखो की शादी जसे मर्जी करो पर दहेज ही मन्गो शादी के समय हम केवल देहज ही देंगे और बरातियो का स्वागत भी करेंगे खूब धूम धाम से पर खाना नहीं खीलायेन्गे कारण जी टी.वी के पैसे है मोबाइल के पैसे है लैपटॉप भी देंगे पर खाना आप अपने पैसो से ढाबे पर खालेना उस्के  पैसे नहीं है और एक शर्त है की कपड़े हम केवल पटरी बाज़ार से खरीद के देंगे हम ब्रांडेड चीजों में वीशवास नहीं रखते आखिर हमारी भी कोई इज्जत है ये तो हुइ लड़की वालो की शर्ते

          अब सुनिए लड़के वालो की शर्ते जी हम लड़की को अपनी बेटी से ज्यादा प्यार करेंगे अपने हाथो पर रखेंगे पर जी इसे नाश्ते में मोबाइल ही मिलेगा लंच और डिनर मे आइस मतलब बर्फ के साथ हैंड पंप का पानी खा और पीना पडेगा और सुनिए की शादी के बाद हनीमून के लिए हम इसे अपने खान दानी फिर्ज़ में ही भेजेंगे बिमारी में लोकल कम्पोडर से बढ़िया इलाज़ करवा देंगे और बचे होने पर हम बचो को केवल सरकारी स्कूल के पेड़ के निचे मोबाइल लेकर भेजेंगे पर चिंता न करे हमारे पास अब कार भी है पर वो केवल धके से ही चलती है अगर पेट्रोल डलवा दो तो खराब हो जाती है 

          अब गाने की बारी सुनो सुनो एक शादी सुनो एक लड़के की एक लड़की की और एक बजेट की तुम एक शादी सुनो मोबाइल है फिर्ज़ है कार है पर सरकार खाना नहीं है सुनो सुनो एक शादी सुनो
एक लड़का था  वो मिडल क्लास का एक लड़की थी मिडल  की मोबाइल खाते थे और फिर्ज़ से आइस पिटे थे पर रोटी मिलती नहीं थे एक घर था बिना फर्िनचर का गैस भी नहीं आती थी सुनो सुनो एक शादी सुनो........

अभी पिचर बाकी है बाबु मुशाये.......................................... 

नम्सकार

आप सोच रहे होगे की मे इस साप की तरह भ्यान्क दीखता होन्गा पर एसा नहि है मे एसा दीखता नहि हुं पर कभी कभी बन जाता हुं  अपने आप को नुक्सान पहुचाने के लिये मेरा नाम नटखट हैं ये नाम तो कालपनीक है पर मै इसी नाम से लिखना पसन्द करुन्गा कियोकी ये मुझे पसन्द हैं।

मुझे बोल्ग लिखने की प्रन्ना श्री अन्तर सोहील जी ने दी है मे उनका अभारी हू की उनहोने मुझे इस कुए मे कुदने के लिये काहा मुझे अरम्भ मे तो कम मजा आया पर अब मे इसका पुर्ण आन्नद उटाने की कोशिस कर राहा हु मे अपने बरे मे लिखना पसन्द करता हु पर आज एक माहान पुरुष के बारे मे श्री अन्तर जी दरसल हम दोनो एक ही व्यवसाय के दो अलग अलग किडे है वो अलग फल खाते है मै अलग फल खाता हुं वो मेरे प्रिय मित्र तो है पर उनकी खास बात है की वो बातो बातो मे दुसरे का चीरहरण करने लगते है ये ही कला उनकी खुबी है इस के अलावा इन्मे और भी केला मोजुद है  और एक खास बात वो भी मेरि तरह चाचा के पुराने आशिक है चाचा काले रन्ग वाला बलकी ये जनाब तो और दो कदम आगे है चाचा और अन्तर जी एक दुसरे के पुराने पडोसी है मुझे तो एसा लगता है की दोनो एक दुसरे को अपने अपने केबीन की खिड्की से देख कर मुस्कराते होगे और शर्मा कर अपने अपने शर्ट मे मुहु डाल लेते होन्गे और फिर से नजरे उटा कर एक दुसरे को प्यार भरी नीगाहो से ताकते होगे । चलो दोनो जेसे है बहुत अच्छे है आखीर एक लीखने के लीये प्रेन्ना देता है तो दुसरा मेरी काहनीयो को प्रेरणा प्रदान करता है।