शनिवार, 12 मार्च 2011

चाचा का दुख और हमारा बजट

नम्स्कार,
                 आज शुक्रवार है और आज सुबह जब मै सिरसा एक्सप्रस मे बेटा था और ट्रेन दिल्हि के सदर बाजार के स्टेशन पर रुकी तभी मुझे हमारे प्रय चाचा जी नजर आए और मेने बीना देर करे उनेह अवाज लगाइ चाचा जी राम राम चाचा जी ने अपने काले रन्ग का अभी भी त्याग नही करा है उनोहने काली जरसी और काली पेन्ट पहन रखी थी। दरसल मै उन्हे उस स्टेशन पर देख कर हेरान था कियो की काफी टाइम के बाद दीखे थे ।

               मेने चाचा जी से पुछा की आज यहा केसे और आज लेडीज ड्ब्बे के आगे नही रुके क्या बात कोइ परेशानी है क्या। चाचा जी ने मेरी राम राम का उत्तर दिया और मुह उपर करके और अपने काले होटो को खोलते हुवे बोले की मेरी काली कुतीया जो गुम होगी थी वो वापस मील गई थी मेने चाचा जी को रोकते हुए उनेह बेधाइ दी चाचा जी काले से लाल होते हुवे बोले वो साली धोखेबाज काली कुत्ती फिर भाग गई।
                      चाचा जी का दुख मुझसे देखा नही  गया और मै अपना मुह निचे कर के हसने लेगा वेसे मुझे अभी तक पता नही चला है की साली वापस केसे आई ये खबर मै पता कर के ही दम लुन्गा।

इसी बीच मेने चाचा जी से अपने बजट के बारे मे पुछा की चाचा जी केसा लगा हमारा बजट और क्या फायदा हुआ आप को । चाचा जी तुरत मेरी कालर पकडी और कहा की कुछ भी हो जाए और चाहे कितने भी मेगां हो जाये कपडा मै काला रंग पहना नही छोडुंगा और फाल्तु मेरा टाईम खराब मत कर मेरी काली कुत्तीया मिले तो फोन कर देना मेरे फोन मै बेलेन्स नही है चल निकल नटखट